मुजफ्फरनगर: क्या आपने कभी उस स्थान के बारे में सुना है जहां महाराज परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी? उत्तर प्रदेश में स्थित शुकतीर्थ (पहले शुक्रताल के नाम से जाना जाता था) एक ऐसा ही धार्मिक स्थल है।
मुजफ्फरनगर स्थित शुकतीर्थ (Shukteerth)
गंगा नदी के पवित्र किनारे पर बसा शुकतीर्थ, मुजफ्फरनगर जिले से लगभग 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मान्यता है कि द्वापर युग में यहां वेद व्यास के पुत्र महर्षि शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को श्रीमद् भागवत कथा सुनाई थी। इस कथा के ज्ञान से प्रेरित होकर राजा परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई।
पौराणिक कथाओं का साक्षी
द्वापर युग की कथाओं के अनुसार, पाण्डवों के वंशज राजा परीक्षित को श्रापवश एक सर्पदंश से मृत्यु का भय था। मोक्ष की प्राप्ति के लिए उन्होंने शुकदेव गोस्वामी जी, महर्षि वेद व्यास के पुत्र, से मार्गदर्शन मांगा। माना जाता है कि यहीं शुकतीर्थ में, पवित्र गंगा नदी के तट पर, शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत कथा सुनाई थी। इस कथा के ज्ञान से प्रेरित होकर राजा परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई।
इतिहास की एक झलक
शुक्रतीर्थ का इतिहास हजारों साल पुराना है। माना जाता है कि यहाँ एक विशाल बरगद का पेड़ है, जिसके नीचे बैठकर राजा परीक्षित ने कथा सुनी थी। इस पेड़ को अक्षयवट के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है “अविनाशी बरगद का पेड़”। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि यह पेड़ कभी अपने पत्ते नहीं गिराता।
शुकदेव जी के नाम पर ही इस स्थान का नाम पहले शुक्रताल पड़ा, जिसका अर्थ है “शुकदेव का ताल”। बाद में इसे शुक्रतीर्थ के नाम से जाना गया, जिसका अर्थ है “शुक्र का तीर्थ”।
आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति
शुक्रतीर्थ न सिर्फ धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यहां आकर मन को शांति भी मिलती है। हजारों श्रद्धालु हर साल इस पवित्र स्थान पर आते हैं और गंगा में स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। साथ ही, वे मंदिरों में दर्शन कर और कथा सुनकर अपना आध्यात्मिक विकास करते हैं।
यहाँ के प्रमुख मंदिरों में शुक्रदेव जी का मंदिर, शुकदेव जी और राजा परीक्षित की सुंदर मूर्तियों से सुशोभित है। इसके अलावा, हनुमान जी का विशाल मंदिर, जिसमें 75 फुट ऊंची हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है, पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। साथ ही गणेश जी, शिव जी, स्वामी चरनदास जी और देवी शकंभरी के मंदिर भी दर्शनीय हैं।
स्वामी कल्याण देव जी महाराज का शुकतीर्थ क्षेत्र के विकास में योगदान
यह सच है कि ब्रह्मलीन वीतराग पद्मश्री स्वामी कल्याण देव जी महाराज ने शुकतीर्थ (पहले शुक्रताल के नाम से जाना जाता था) के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1902 में यहां आने के बाद, उन्होंने अपना जीवन इस पवित्र तीर्थस्थल को विकसित करने और इसकी महिमा को जन-जन तक पहुंचाने में समर्पित कर दिया।
जब वे पहली बार यहां आए थे, तब यह क्षेत्र घने जंगलों और जानवरों से भरा हुआ था। स्वामी जी के नेतृत्व और प्रेरणा से, धीरे-धीरे यह क्षेत्र एक पवित्र तीर्थस्थल में विकसित हुआ। आज शुकतीर्थ में एक दर्जन से अधिक आश्रम हैं, जिनमें से स्वामी कल्याण देव आश्रम सबसे प्रमुख है। आश्रम में गुरुकुल पद्धति से निःशुल्क शिक्षा, गोशाला और अनेक धार्मिक एवं सामाजिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
निस्संदेह, स्वामी कल्याण देव जी महाराज शुकतीर्थ के विकास के लिए प्रेरणा स्त्रोत और वास्तुकार थे। उनके दूरदर्शी नेतृत्व, कठोर परिश्रम और समर्पण ने इस क्षेत्र को एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सामाजिक केंद्र में बदल दिया। उन्होंने अपने संन्यासी जीवन में 300 से अधिक शिक्षण संस्थाओं का निर्माण कराया, जहाँ गरीब और वंचित बच्चों को शिक्षा प्रदान करने का कार्य हुआ।
जैसा कि स्वामी ओमानंद, स्वामी कल्याण देव आश्रम के परमाध्यक्ष, बताते हैं, आश्रम में श्रीमद्भागवत कथाओं का आयोजन अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्वामी ओमानंद के कथनानुसार, आश्रम में प्रतिदिन श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन होता है। त्योहारों और महत्वपूर्ण धार्मिक अवसरों पर, आश्रम में बड़े आयोजन होते हैं, जिनमें प्रसिद्ध कथा वाचक भाग लेते हैं। इन कथाओं में भारी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं, जो आश्रम में आयोजित होने वाली कथाओं के प्रति उत्साह और श्रद्धा को दर्शाता है।
शुकतीर्थ की यात्रा का सुझाव
यदि आप उत्तर प्रदेश की यात्रा पर हैं, तो शुकतीर्थ जरूर जाएं। यहां आने का सबसे अच्छा समय नवंबर से फरवरी के बीच का होता है, क्योंकि इस दौरान मौसम सुहावना रहता है। शुकतीर्थ जाने के लिए आप मुजफ्फरनगर रेलवे स्टेशन से टैक्सी या रिक्शा ले सकते हैं। यहां हर साल कार्तिक पूणिमा के अवसर पर गंगा मेला का आयोजन होता है, जहां देश भर से श्रद्धालु आते हैं।
अगर आप अपने वाहन से आ रहें है तो भी आप आराम से आ सकते है। सड़क व्यवस्था अच्छी होने के कारण आपको आने में किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा।
तो देर किस बात की, शुकतीर्थ की यात्रा का प्लान बनाइए और पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिक शांति का अनुभव लीजिए!
1 Comment
Pingback: आचार्य अचल कृष्ण शास्त्री ने भागवत कथा कर बनायी पहचान, जानिए कैसे