मुजफ्फरनगर: हिन्दू धर्म में, कथा व्यास एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे धार्मिक ग्रंथों और कहानियों को जन-मानस तक पहुँचाने का काम करते हैं, जिससे लोगों में आध्यात्मिक जागृति और सद्ज्ञान का प्रसार होता है। कथा व्यास समाज में एक महत्वपूर्ण कड़ी का काम करते हैं। वे जटिल धार्मिक ग्रंथों को सरल बनाकर उनकी शिक्षाओं को आम जनता तक पहुँचाते हैं। कथा वाचन के माध्यम से वे लोगों में भक्ति भाव जगाते हैं, जीवन जीने की कला सिखाते हैं, और धर्म के सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।
आज हम एक ऐसे ही कथाव्यास के बारे में जानने वाले है। जो युवा कथाकार के रूप में लोगों के बीच काफी चर्चा का विषय बने हुए है, कम समय में इन्होंने अपनी एक खास पहचान बना ली है।
कौन हैं आचार्य अचल कृष्ण शास्त्री
प्रसिद्ध कथाव्यास आचार्य अचल कृष्ण शास्त्री (Achal Krishna Shastri) ने भागवत एवं राम कथा के द्वारा अपनी सहज और सरल वाणी तथा विद्वता से शुकतीर्थ धाम में युवा कथाकार के रूप में एक खास पहचान बनायी है। इनसे कथा सुनने के लिए लोग उत्सुक रहते है।
उनसे हुई खास बातचीत के दौरान वह उत्तर प्रदेश के जनपद बरेली, तहसील फरीदपुर के थाना भुता के छोटे से गॉव अठायन में रहने वाले साधारण कृषक परिवार में जन्मे अचल मिश्रा “अब राष्ट्रीय कथाव्यास अचल कृष्ण शास्त्री” हाईस्कूल पास कर भागवत पीठ श्री शुकदेव आश्रम, शुकतीर्थ, मुजफ्फरनगर आ गए।
शुकतीर्थ, शुक्रताल, मुजफ्फरनगर
पवित्र गंगा नदी के तट पर बसा शुकतीर्थ, शुक्रताल, उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। मान्यता है कि यहीं पर लगभग 5000 साल पहले शुकदेव गोस्वामी ने महाराजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनाया था। हर साल अक्टूबर-नवंबर महीनों में यहां श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए आते हैं।
स्वामी ओमानंद जी महाराज द्वारा आचार्य अचल कृष्ण शास्त्री का सफल मार्गदर्शन
आश्रम के ही गुरुकुल में इनकी संस्कृत माध्यम की शिक्षा प्रारंभ हुई। भागवत पीठ पीठाधीस्वर स्वामी ओमानंद जी महाराज के सफल मार्गदर्शन में श्रीमद भागवत, रामायण एवं अन्य पुराणों का इन्होंने गहनता पूर्वक अध्ययन किया। सन्त प्रवर के आशीर्वाद फल स्वरूप कम समय में ही भागवत कथा करना प्रारंभ कर दिया। वर्तमान समय में श्रीमद् भागवत तथा राम कथा के विशेषज्ञ वक्ता के रूप में अपनी पहचान बना चुके अचल कृष्ण शास्त्री की कथाओं में श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
आचार्य अचल कृष्ण शास्त्री द्वारा की गई कथाओं का आयोजन
इनकी कथाओं में बड़े बड़े पूजनीय सन्त, भगवद् भक्त वृंद, उद्योगपति, राजनेता, अभिनेता, आई-ए-एस, आई-पी-एस, पी-सी-एस अधिकारीगण एवं शिक्षाविद् पधारकर कथा श्रवण का लाभ प्राप्त करते हैं। वह सतत श्रीमद् भागवत, राम कथा हेतु भगवद् यात्रा में लगे रहते हैं।
बद्रीनाथ, द्वारिकाधाम, हरिद्वार, वृंदावन नैमिषारण्य, चित्रकूट आदि बड़े बड़े तीर्थों सहित भारत के विभिन्न गॉव एवं शहरों में इनकी कथाओं के भव्य एवं दिव्य आयोजन हो चुके हैं। कथाओं के अतिरिक्त वह भागवत पीठ की सेवा तथा भागवत अध्ययन में अपना अधिक समय व्यतीत करते हैं। इनके पिता शंकर लाल मिश्रा कृषक होने के साथ साथ ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय भी करते हैं।
शुकतीर्थ की जानकारी
मान्यता है कि शुकतीर्थ वही स्थान है जहां शुकदेव गोस्वामी जी ने राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत कथा सुनाई थी। राजा परीक्षित, अभिमन्यु के पुत्र और हस्तिनापुर के राजा थे। उन्हें श्रृंगी ऋषि के पुत्र तक्षक नाग द्वारा डसे जाने का शाप मिला था। शुकदेव जी के कथन से प्रभावित होकर, राजा परीक्षित ने अपने अंतिम दिनों में भगवान विष्णु का ध्यान किया और मोक्ष प्राप्त किया। शुक्रताल का नामकरण ऋषि शुकदेव जी से ही जुड़ा हुआ है। पहले इसे “शुकताल” के नाम से जाना जाता था, जो बाद में बदलकर “शुकतीर्थ” हो गया।
शुकतीर्थ धार्मिक महत्व के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य से भी भरपूर है। यहां आकर आप आध्यात्मिक शांति के साथ-साथ प्रकृति का आनंद भी उठा सकते हैं।