Dhari Devi: अलकनंदा नदी के तट पर, श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच, विराजमान हैं उत्तराखंड की एक अनोखी देवी – धारी देवी। उनका मंदिर श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है, लेकिन धारी देवी से जुड़ी कहानियां और मान्यताएं उन्हें और भी ज्यादा रहस्यमयी बना देती हैं. आइए, जानते हैं धारी देवी के अनसुने पहलुओं के बारे में:
Dhari Devi विस्थापित मूर्ति का रहस्य
धारी देवी की सबसे अनोखी बात है उनकी मूर्ति का स्वरूप मंदिर में विराजमान है सिर्फ उनका ऊपरी आधा शरीर! मान्यता है कि उनका निचला आधा शरीर करीब 22 किलोमीटर दूर कालीमठ में स्थित है, जहां उन्हें काली रूप में पूजा जाता है। कुछ लोगों का कहना है कि दोनों मूर्तियों को साथ नहीं रखा जा सकता, इसलिए ही वे अलग-अलग स्थानों पर विराजमान हैं।
2013 का विस्थापन और बाढ़ का संयोग
धारी देवी का मूल मंदिर पहले अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित था। 2013 में, एक पनबिजली परियोजना के लिए मंदिर को नदी से ऊपर, पहाड़ी पर स्थानांतरित किया गया। इत्तफाक से, उसी दिन क्षेत्र में भयानक बाढ़ आई, जिसे कई लोगों ने देवी के विस्थापन से जोड़कर देखा।
चार धामों से जुड़ा इतिहास
धारी देवी को चार धाम – बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री – की रक्षक माना जाता है। प्राचीन काल में, चार धाम यात्रा का रास्ता धारी देवी मंदिर से होकर जाता था। यात्री यहां दर्शन कर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते थे।
108 शक्ति पीठों में से एक : Dhari Devi
धारी देवी मंदिर का महत्व सिर्फ उत्तराखंड तक ही सीमित नहीं है। श्रीमद देवी भागवत ग्रंथ के अनुसार, यह मंदिर भारत के 108 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। शक्ति पीठ वो स्थान होते हैं जहां सती के शरीर के अंग गिरे थे।
धारी देवी की पूजा
धारी देवी को सुबह, दोपहर और शाम – दिन में तीन बार अलग-अलग रूपों में पूजा जाता है। सुबह उन्हें शैलपुत्री के रूप में, दोपहर में पार्वती के रूप में और शाम को काली के रूप में पूजा जाता है।
अगली बार जब आप उत्तराखंड जाएं, तो धारी देवी के दर्शन ज़रूर करें और इस रहस्यमयी देवी के आशीर्वाद को प्राप्त करें।